वास्तु शास्त्र क्या है
वास्तु भवन निर्माण और आंतरिक वस्तुओं को व्यवस्थित करने की प्राचीन विधा है। वस्तुओं को व्यवस्थित करने से मतलब घर की भीतरी साज सज्जा से है। वास्तु का अर्थ “वस्तु” से है जबकि शास्त्र विधा या ग्रंथ को कहते है। “वास्तुशास्त्र” का अर्थ हुआ “वस्तु का ग्रन्थ” अर्थात वस्तु से संबंधित विधा।
वास्तु शास्त्र में सबसे महत्वपूर्ण दिशा है जो भवन या किसी भी वस्तु की होती है। सही दिशा घर में सुख समृद्धि लाती है जबकि गलत दिशा जीवन में कठिनाइयां भर देती है। घर में वास्तु दोष नही होने पर सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है।
पृथ्वी पर मौजूद 5 तत्वों अग्नि, वायु, पृथ्वी, आकाश और जल का प्रभाव मनुष्य पर पड़ता है। मनुष्य का शरीर भी पंचतत्व से मिलकर ही बना होता है। इन तत्वों का संतुलन बनाये रखना जरूरी है। वास्तु शास्त्र में इन्ही तत्वों का संतुलन रखने के नियम है।
वास्तु शास्त्र का मतलब है कि भवन निर्माण में इस्तेमाल होने वाले नियम। इन नियमों से यह पता लगाया जाता है कि घर में वस्तुएं कहा और किस दिशा में रखना शुभ रहता है। वास्तु में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि वस्तु के लिए दिशा सही हो। दूसरी तरह से कहे तो वास्तुशास्त्र में दिशाओं का सही ज्ञान है।
वास्तु शास्त्र अथर्ववेद के स्थापत्य वेद से आया है। ऋग्वेद में भी वास्तु शास्त्र का उल्लेख मिलता है। जापान, कोरिया जैसे देशों में इस्तेमाल की जाने वाली विधा फेंगशुई भी एक तरह का वास्तुशास्त्र ही है।