क्यों होती हैं मिथुन और कन्या लग्न सबसे कमजोर?
बुध को एक बुद्धिमान ग्रह कहते हैं। किंतु नवग्रह में चंद्रमा के बाद यह सबसे सुकुमार ग्रह भी माना जाता है। इसका कारण समझना कोई बड़ी बात नहीं है। ज्योतिष में बुध की दो राशियां मिथुन और कन्या, जिन लोगों का लग्न होती हैं, उन्हें दुर्घटना, चोट-फेंट से बच कर रहने की सलाह दी जाती।
यहां समझने की बात है कि 12 लग्नों में मात्र मिथुन एवं कन्या लग्न वालों को यह सलाह क्यों दी जाती है। यदि मिथुन लग्न को देखें तो इसके छठे भाव में वृश्चिक राशि पड़ती है जिसका स्वामी मंगल होता है। इसी प्रकार मिथुन लग्न में आठवें भाव में मकर राशि पड़ती है, जिसका स्वामी शनि होता है। ये दोनों ही क्रूर ग्रह होते हैं और चोट लगने पर मजे की दिक्कतें दे जाते हैं।
इसी प्रकार कन्या लग्न पर विचार करें तो इसके आठवें घर में कुंभ राशि पड़ती है जो शनि की राशि है। इसके लग्न के आठवें भाव में मेष राशि पड़ती है जिसका स्वामी मंगल है।
अब यह बात और समझने वाली है कि मिथुन और कन्या लग्नों में तुलनात्मक रूप से कन्या लग्न अधिक ‘एक्सीडेंट प्रोन’ है। कन्या लग्न में छठे भाव में पड़ने वाली कुंभ राशि शनि की मूल त्रिकोण राशि और आठवें भाव में पड़ने वाली मेष राशि मंगल की मूल त्रिकोण राशि होती है। कहते हैं कि ग्रह सबसे अधिक फल उस भाव के देते हैं जहां उनकी मूल त्रिकोण राशि पड़ जाए। अत: मंगल एवं शनि मिथुन की तुलना में कन्या पर अपना नेगेटिव प्रभाव अधिक डालेंगे।
तो राजन्, क्या सभी मिथुन एवं कन्या लग्न वालों को इस तथ्य से डर कर बैठ जाना चाहिए? कतई नहीं। इसमें केवल उन्हीं लोगों को सतर्क रहने की आवश्यकता है जिनके जन्मांग में शनि एवं मंगल दुर्बल एवं पाप प्रभाव लिये हो। सब को चिंता करने की आवश्यकता नहीं।
