कुण्डली का भेद खोलता है गोचर
- ज्योतिष में कुण्डली विश्लेषण के दो भाग होते हैं..स्थिर (स्टेटिक) और गतिमान (डाइनेमिक)। स्थिर में भावों, ग्रहों और योगों पर ध्यान केंद्रित कर किसी जातक की कुंडली की संभावनाओं और क्षमताओं पर विचार किया जाता है। किंतु यह आवश्यक नहीं है कि दो लीटर के पात्र में सदैव दो लीटर दूध या पानी रहे।
- आपके पात्र में कितना पानी या दूध रहेगा अथवा आपकी कुंडली की संभावनाएं किस सीमा तक फलीभूत होंगी, इसका संकेत कुंडली के डाइनेमिक अंग से मिलता है। दशा-अंतर्दशा और गोचर कुंडली के डाइनेमिक अंग होते हैं।
- ज्योतिषी को इस पर सबसे अधिक महत्व देना चाहिए। आपकी जो वर्तमान स्थिति है, योग्य ज्योतिषी उसे मात्र प्रत्यंतर दशा पर विचार करके फटाक से बता देता है। यह है दशाओं का महत्व।
- दशा-अंतर्दशाओं का न केवल लग्न कुंडली बल्कि संबंधित वर्ग कुंडली पर भी सम्यक विचार किया जाना चाहिए। अब विवाह से जुड़ा मामला हो तो दशाओं को नवांश कुंडली में भी देखा जाना चाहिए। वर्ग कुंडलियों में दशा देखने के अपने नियम है जो कई बार प्रचलित नियमों से सर्वथा भिन्न होते हैं। उदाहरण के लिए दशा नाथ और अंतर्दशा नाथ के बीच दिद्वादश या षडाष्टक संबंध अच्छे नहीं माने जाते। किंतु नवांश में दशानाथ और अंतर्दशा नाथ के परस्पर दिद्वादश या षडाष्टक बैठे होने पर ऐसी अवधि में विवाह हो जाता है।
- नौकरी के मामले में दशानाथ से यदि अंतर्दशा नाथ प्रतिकूल स्थान पर बैठा हो और पाप प्रभाव में हो तो यह रोजगार के लिए विपरीत समय होता है। डी10 में दशम भाव के स्वामी, दशम भाव पर दृष्टि डालने वाले ग्रहों, दशम भाव में बैठे ग्रहों की दशा-अंतर्दशा प्राय: अच्छी रहती है।
- इस प्रकार अन्य वर्ग चक्रों में यदि दशाओं का धैयपूर्वक विश्लेषण किया जाए तो सटीक फलादेश में काफी सहायता मिलती है।